“बबिता कपूर – एक माँ, एक मिसाल”
बॉलीवुड की चमक-धमक से जुड़ी हर कहानी हमेशा रोशनी से भरी नहीं होती। कुछ कहानियाँ ऐसी भी होती हैं जो अंधेरे से निकलकर उजाले तक का सफर तय करती हैं—बिना किसी शोर के, सिर्फ आत्मबल के सहारे। ऐसी ही एक कहानी है बबिता शिवदासानी कपूर की।
🔹 एक्ट्रेस से माँ बनने तक का सफर
बबिता ने अपने करियर की शुरुआत 1966 में की थी और अपने समय की सफल अभिनेत्रियों में शुमार थीं। फिर उन्होंने रणधीर कपूर से शादी की और फ़िल्मों को अलविदा कह दिया। शादी के कुछ वर्षों बाद ही उनके रिश्ते में दरारें आने लगीं। आर्थिक और मानसिक तनाव बढ़ने लगा, और अंततः रणधीर कपूर और बबिता अलग हो गए। हालाँकि उन्होंने कभी औपचारिक तलाक नहीं लिया, लेकिन बबिता ने अपनी बेटियों करीना कपूर और करिश्मा कपूर को एक सिंगल मदर के रूप में पाला।
🔹 एक माँ की जिम्मेदारी
रणधीर कपूर उस समय फिल्मों में सक्रिय नहीं थे और कपूर परिवार की परंपरा थी कि उनके घर की महिलाएं फिल्मों में काम नहीं करती थीं। लेकिन बबिता ने इस परंपरा को तोड़ा। उन्होंने अपनी बेटियों के लिए ख्वाब बुने और उन्हें बॉलीवुड में लाने का फैसला किया।
जब करिश्मा ने फ़िल्मों में कदम रखा, तो समाज, मीडिया और यहां तक कि परिवार के कुछ लोग भी उनके खिलाफ थे। लेकिन बबिता हर कदम पर उनके साथ खड़ी रहीं। फिर करीना आई—एक और स्टार। दोनों बहनों को इंडस्ट्री में ऊँचाई तक पहुँचाने के पीछे बबिता की कड़ी मेहनत और रणनीति थी।
🔹 तानों से ताकत तक
समाज ने उन्हें जज किया, कपूर खानदान की परंपराएं उनके रास्ते में आईं, लेकिन बबिता ने न तो अपने आत्मसम्मान को गिरने दिया और न अपनी बेटियों के सपनों को। उन्होंने हर ताना, हर चुनौती को चुपचाप सहा और उसे अपनी ताकत बना लिया।
🔹 आज का सच
आज करीना और करिश्मा दोनों बॉलीवुड की सफल और सम्मानित अभिनेत्रियाँ हैं। वे कई इंटरव्यूज़ में यह कह चुकी हैं कि उनकी माँ बबिता ही उनकी सबसे बड़ी प्रेरणा हैं। बबिता ने सिर्फ बेटियों को नहीं, बल्कि पूरे समाज को यह दिखा दिया कि एक माँ अकेले भी सब कुछ कर सकती है—अगर उसके भीतर हिम्मत हो।