दीवार के 50 साल पूरे
बॉलीवुड की आइकॉनिक फिल्म ‘दीवार’ को इस साल अपनी रिलीज़ के 50 साल पूरे हो रहे हैं। यश चोपड़ा द्वारा निर्देशित और सलीम-जावेद की जोड़ी द्वारा लिखित यह फिल्म भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक मील का पत्थर मानी जाती है। न केवल इसके संवाद और कहानी दर्शकों के दिलों में बसे हुए हैं, बल्कि इसका हर किरदार आज भी सिनेमा प्रेमियों के लिए एक प्रेरणा है।
18 दिनों में तैयार हुई थी स्क्रिप्ट
‘दीवार’ की कहानी को लिखने में सलीम-जावेद की जोड़ी ने सिर्फ 18 दिन का समय लिया था। यह फिल्म 1970 के दशक की सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों को दर्शाती है, जिसमें एक मजदूर, उसकी कठिनाइयां और उसके बच्चों की संघर्ष गाथा को बेहद प्रभावी ढंग से दिखाया गया है।
अमिताभ बच्चन का ‘एंग्री यंग मैन’ अवतार
इस फिल्म ने अमिताभ बच्चन को “एंग्री यंग मैन” का टैग दिया। विजय का किरदार भारतीय सिनेमा के सबसे यादगार पात्रों में से एक बन गया। उनका संवाद, “मैं आज भी फेंके हुए पैसे नहीं उठाता” और “मेरे पास मां है” आज भी गूंजता है।
शशि कपूर और मां का भावनात्मक कनेक्शन
फिल्म में शशि कपूर ने रवि का किरदार निभाया, जो अपने भाई विजय के विपरीत पुलिस अधिकारी है। फिल्म का पारिवारिक और भावनात्मक पहलू, विशेष रूप से मां के साथ दोनों भाइयों का रिश्ता, कहानी की गहराई को बढ़ाता है। निरुपा रॉय का मां का किरदार भारतीय सिनेमा के इतिहास में अमर है।
दीवार के पीछे की प्रेरणा
फिल्म की कहानी को मुंबई के डॉक्स और मजदूरों की हड़तालों से प्रेरित माना जाता है। यह फिल्म संघर्ष, सामाजिक असमानता और भाईचारे की एक शक्तिशाली दास्तां है।
पुरस्कार और सम्मान
1975 में रिलीज़ हुई ‘दीवार’ को न केवल आलोचकों ने सराहा, बल्कि यह बॉक्स ऑफिस पर भी बड़ी हिट रही। इसे कई पुरस्कार मिले, और सलीम-जावेद की जोड़ी को इस फिल्म ने पटकथा लेखन में नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया।
50 साल बाद भी अमर
आज, 50 साल बाद भी ‘दीवार’ का प्रभाव वैसा ही है। यह फिल्म सिनेमा प्रेमियों को न केवल एंटरटेन करती है, बल्कि जीवन के संघर्षों और रिश्तों की गहराई को भी समझने का मौका देती है।
निष्कर्ष
‘दीवार’ सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि एक आंदोलन थी जिसने भारतीय सिनेमा को नई दिशा दी। इसके संवाद, किरदार और कहानी आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने 50 साल पहले थे। यह फिल्म हमेशा बॉलीवुड के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज रहेगी।