एक सादगी, एक भावनात्मक गहराई, और एक ऐसा संदेश जो दिल को छू जाता था।
दिल, एक ऐसा शब्द जो ना सिर्फ शरीर को ज़िंदा रखता है, बल्कि रिश्तों को भी। यह कहानी है दो दिलों की — जो टकराए, उलझे, बिखरे… और फिर समझ की डोरी से जुड़ गए।
आरव एक अमीर बाप का इकलौता बेटा था। महंगे कपड़े, चमचमाती गाड़ी और अपने नाम के आगे “मल्होत्रा ग्रुप” की छाया लेकर चलता था। उसकी दुनिया पैसे से शुरू होती थी और वहीं खत्म भी।
साक्षी एक साधारण शिक्षक की बेटी थी। अनुशासन और आत्मसम्मान उसके जीवन के मूल थे। वह सपने भी सोच-समझकर देखती थी।
कॉलेज में पहली बार जब आरव और साक्षी की नज़रें टकराईं, तब कोई संगीत नहीं बजा, कोई बारिश नहीं हुई — सिर्फ एक तीखी बहस हुई थी। आरव ने मज़ाक किया, और साक्षी ने सबके सामने उसे उसकी औकात दिखा दी। आरव की आदत थी कि लोग उससे डरें, लेकिन साक्षी ने उसे चुनौती दी थी।
…….टकराव के बाद तकरारें बढ़ीं। वो हर बात पर लड़ते, मगर अब उनके बीच कुछ बदल रहा था। साक्षी को आरव की मासूम सी हँसी पसंद आने लगी थी। आरव को साक्षी की बातें दिल को छूने लगी थीं।
और एक दिन, आरव ने कहा —
“तुम्हारे बिना सब अधूरा लगता है, साक्षी।”
साक्षी चौंकी, मगर कुछ बोली नहीं। उसकी चुप्पी ही उसका इकरार थी।
……..जब आरव ने अपने पिता से साक्षी के बारे में बताया, तो घर में तूफान आ गया। “एक मिडल क्लास लड़की हमारी बहू? ये कभी नहीं हो सकता!” — पिता ने कहा।
साक्षी के घर भी हालात अच्छे नहीं थे। पिता ने समझाया, “बेटी, वो लोग तुम्हें कभी अपना नहीं पाएंगे। प्यार काफी नहीं होता, सामाजिक दर्जा भी देखना पड़ता है।”
लेकिन आरव और साक्षी ने फैसला कर लिया था — वो शादी करेंगे, चाहे दुनिया माने या नहीं।
शादी के बाद जीवन वैसा नहीं रहा जैसा फिल्मों में दिखता है। आरव के पास पैसे नहीं थे, और साक्षी को नए माहौल में बहुत कुछ सहना पड़ रहा था। धीरे-धीरे छोटी-छोटी बातें बड़े झगड़ों में बदलने लगीं।
एक दिन आरव ने गुस्से में कह दिया — “तुम्हारे लिए मैंने सब छोड़ दिया… और अब तुम ही मुझे समझती नहीं!”
साक्षी रो पड़ी। “मैंने भी अपने पिता की आंखों का सारा गर्व तोड़ दिया… सिर्फ तुम्हारे लिए। लेकिन हम दोनों एक-दूसरे को बदलने में लग गए, समझने में नहीं।”
……उनके बीच कुछ दिन तक सन्नाटा रहा। लेकिन फिर आरव ने कुछ सोचा। उसने नौकरी ढूंढनी शुरू की, साक्षी ने ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया। वो अपने सपनों को नए सिरे से बुनने लगे।
धीरे-धीरे उनके बीच संवाद लौटा। एक दिन आरव ने कहा —
“मैंने सीखा है, साक्षी… प्यार जीतता है, लेकिन तब, जब अहंकार हार मान ले।”
साक्षी मुस्कराई, “और समझदारी हाथ थामे रखे, चाहे हालात कैसे भी हों।”
……सालों बाद, आरव ने अपनी मेहनत से एक छोटा सा स्टार्टअप शुरू किया, जो आगे चलकर मल्होत्रा ग्रुप से भी आगे निकल गया। साक्षी अब एक स्कूल की प्रिंसिपल थी।
उनके रिश्ते में अब झगड़े नहीं थे, सिर्फ बातचीत थी। कोई दिखावा नहीं था, सिर्फ अपनापन था।
और सबसे खास बात — अब उनके पास बहुत कुछ था, लेकिन सबसे कीमती था एक-दूसरे का साथ।
“जब दिल सच्चा हो, तो दीवारें गिरती हैं… और रास्ते बनते हैं।”
“आपकी नज़र में इस कहानी की रेटिंग क्या होगी?” 1/10